Friday, February 15, 2008

दर्शनीय है जोधा अकबर

सचमुच लंबे अर्से में इतना भव्य, इस कदर आकर्षक, गहरी अनुभूति का प्रेम, रिश्तों की ऐसी रेशेदारी और ऐतिहासिक तथ्यों पर गढ़ी कोई फिल्म आपने नहीं देखी होगी। यह फिल्म आपकी पूरी तवज्जो चाहती है। इस धारणा को मस्तिष्क से निकाल दें कि फिल्मों का लंबा होना कोई दुर्गुण है। जोधा अकबर भरपूर मनोरंजन प्रदान करती है। आपको मौका नहीं देती कि आप विचलित हों और अपनी घड़ी देखने लगें।
जैसा कि अमिताभ बच्चन ने फिल्म के अंत में कहा है- यह कहानी है जोधा अकबर की। इनकी मोहब्बत की मिसाल नहीं दी जाती और न ही इनके प्यार को याद किया जाता है। शायद इसलिए कि इतिहास ने उन्हें महत्व ही नहीं दिया। जबकि सच तो यह है कि जोधा अकबर ने एक साथ मिल कर चुपचाप इतिहास बनाया है।
इसी इतिहास के कुछ पन्नों से जोधा अकबर वाकिफ कराती है। मुगल सल्तनत के शहंशाह अकबर और राजपूत राजकुमारी जोधा की प्रेमकहानी शादी की रजामंदी के बाद आरंभ होती है। आशुतोष गोवारीकर आरंभ के बीस मिनट सारे कैरेक्टर को स्थापित करने में बिताते हैं। युद्ध के मैदान में बड़े हो रहे अकबर को हम देखते हैं। बैरम खां की छत्रछाया में अकबर गद्दीनशीं होते हैं और हेमू के साथ पानीपत की निर्णायक लड़ाई होती है। कहा जाता है कि इस लड़ाई के अंत में अकबर ने हेमू का सिर कलम कर गाजी का खिताब लिया था, लेकिन आशुतोष गोवारीकर के अकबर ऐसा करने से मना कर देते हैं। दरअसल आशुतोष के अकबर धर्मनिरपेक्ष, सहिष्णु और प्रजाहितैषी अकबर हैं। आशुतोष ने अकबर से फिल्म के अंत में कहलवा भी दिया है- यह बात भी आप सब पर रोशन रहे कि हर मजहब के एहतराम और बर्दाश्त करने की चाहत ही आने वाले हिंदुस्तान को सुनहरा बना सकती है। अकबर की यह ख्वाहिश आज के हिंदुस्तान के लिए भी प्रासंगिक है। दुर्भाग्य की बात है कि ऐसी फिल्म को लेकर निरर्थक विवाद चल रहा है और राजस्थान के दर्शक इसे नहीं देख पा रहे हैं।

ऑफ स्टंप की गेंदों पर ध्यान दे रहे हैं सचिन

aediled। सचिन तेंदुलकर का त्रिकोणीय सीरीज में अब तक संतुलित प्रदर्शन रहा है और यह स्टार बल्लेबाज आस्ट्रेलिया के खिलाफ रविवार को होने वाले मैच से पहले ऑफ स्टंप से बाहर पिच की जाने वाली गेंदों का सामना करने पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है।
सचिन ने अब तक चार पारियों में 10, 35, 44 और 32 रन की पारियां खेली हैं। इनमें से तीन अवसरों पर उन्होंने अच्छी शुरुआत को बड़ी पारी में तब्दील करने का मौका गंवाया। उन्होंने अगले मैच की कड़ी तैयारियों के सिलसिले में इंडोर सत्र में भाग नहीं लिया तथा नेट्स पर अभ्यास के लिए गए जहां वह मीडियाकर्मियों और प्रशंसकों से भी घिरे रहे। उन्होंने नेट्स पर अपने गेंदबाज क्षेत्ररक्षण कोच रोबिन सिंह को ऑफ स्टंप के करीब या उससे बाहर गेंद करने के लिए कहा।
सचिन इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं आस्ट्रेलियाई गेंदबाज उनके पैड को निशाना बनाकर गेंदबाजी नहीं करेंगे क्योंकि वह मास्टर ब्लास्टर की ऑन साइड पर मजबूती को जानते हैं। एडिलेड में ऑन साइड में खेलना फायदे का सौदा हो सकता है क्योंकि वहां स्क्वायर क्षेत्र की बाउंड्री छोटी है। आस्ट्रेलियाई गेंदबाजों में ऑफ स्टंप लाइन की गेंदबाजी में स्टुअर्ट क्लार्क माहिर हैं। सचिन ने टेस्ट मैचों में न्यू साउथ वेल्स के इस लंबे कद के गेंदबाजों को ध्यान में रखकर ही एक विशेष अभ्यास सत्र बुलाया था।
सचिन ने ऑफ स्टंप से बाहर जाती गेंदों के बारे में यह अनुमान लगाने की कोशिश की कि उन्हें कौन सी गेंद खेलनी चाहिए और कौन सी छोड़नी चाहिए। उन्होंने रोबिन को ऐसी गेंद करने के लिए कहा जो ऑफ स्टंप पर थोड़ी अधिक उछाल लेकर आए। सचिन ने कहा, ऊंचाई का ध्यान रखो। मुझे ऐसी गेंद फेंको जो ऑफ स्टंप पर काफी उछाल ले। कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने पहले नेट्स पर बल्लेबाजी के लिए अपनी बारी का इंतजार किया और बाद में वह सचिन की बल्लेबाजी का लुत्फ उठाने लगे। इस जीनियस बल्लेबाज का फुटवर्क स्ट्रोक जमाते समय बायीं कोहनी को ऊंचा करना सब कुछ किताबी लग रहा था।
सचिन अब शतक बनाने के लिए जरूर बेताब हैं क्योंकि उन्होंने पिछली 33 पारियों से एक दिवसीय मैचों में सैकड़ा नहीं जमाया है जैसा कि कभी देखने को नहीं मिला। सचिन जब अभ्यास करते हैं तो जूनियर खिलाड़ी उनको देखकर सीखने की कोशिश करते हैं। इस दौरे में अपना पहला मैच खेलने का इंतजार कर रहे युवा बल्लेबाज सुरेश रैना जिस एक काम को बहुत अधिक महत्व देते हैं वह है सचिन को करीब से बल्लेबाजी करते हुए देखना। उत्तर प्रदेश के इस बल्लेबाज ने कहा, उन्हें करीब से खेलते हुए देखना एक सबक जैसा है। वह जिस तरह से तैयारी करते हैं उनका शॉट का चयन उनकी तकनीक सभी युवाओं के लिए बहुत अच्छा सबक होते हैं।

बिहार मे "बकरीवाद "

लालू जी को अपनी 'भैंस' के कारण नाम और बदनाम दोनों मिला ! अब भला नीतिश जी क्यों पीछे रहे ? उन्होंने एक 'बकरी' पाल रखा है ! जहाँ कहीं भी जाते हैं - अपनी ' बकरी' को साथ मे ले जाते हैं ! 'बकरी' की शिक्षा - दीक्षा काफी अच्छे स्कूल कॉलेज मे हुई है ! लेकिन यह बकरी जब "नालंदा' वाली मगही मे " मेमीआती" तो नीतिश जी का दिल बाग़ बाग़ हो जाता है ! "बिहार" नालंदा है और "नालंदा" ही बिहार है ! मुझे कई पत्रकार बोले की - हर जनता दरबार मे इस बकरी को बगल मे बिठा - पूरे राज्य को यह संदेश देना चाहते हैं की - अब बिहार मे बकरीवाद ही चलेगा ! "बकरीवाद" के चलते - राज्य के मुठ्ठी भर 'शेर' परेशान हैं ! ( गौर तलब है - नीतिश जी बिहार के "सवर्ण" समुदाय को "मुठ्ठी भर लोग " कह कर बुलाते हैं )नीतिश के कुछ चमचों बेलचों सलाह दी की किसी बकरे को "शेर" की शक्ल दे दी जाए ! नीतिश जी के ख़ास 'बकरी' के चहेते 'बकरे' को रंगा - पोता गया - 'शेर' की शक्ल दी गयी और राजधानी की सुरक्षा मे लगा दिया गया ! अब यह नादान बकरा उछल कूद कर हर रोज "मुठ्ठी भर " लोगों को चुन चुन कर मारता है ! मारना भी चाहिए - जब तक मुठ्ठी भर लोग ख़त्म नही होंगे - बिहार मे "बकरीवाद " कैसे आएगा ?दिल्ली के समीप "नॉएडा" मे करोड़ों की लागत से नीतिश की बकरी का महल तैयार हो रहा है ! कई और बकरी हैं जिनके पैसे इंदिरापुरम और नॉएडा के बड़े बड़े प्रोजेक्ट मे लगे है ! भाई , यह सब नीतिश राज मे शाकाहारी भोजन से बचाए हुए पैसे हैं !नीतिश जी बहुत इमानदार हैं ! अब्दुल कलाम के नालंदा दौरे मे "सिंगुर" वाली समस्या हो गयी ! ख़बर को कम महत्वपूर्ण और दबाने के मे कई 'पत्रकार' भाई मालामाल हो गए ! "नालंदा" की उपजाऊ जमीन को जबरदस्ती लिया गया ! कीमत भी बाज़ार से कई गुना कम ! जाती गत आधार पर "गाओं" का "गाओं" साफ किया गया !नीतिश जी मुस्कुराते हैं ! मंद मंद ! और अपनी बकरी को शाकाहारी घास फूस देते हैं !लिखने को बहुत कुछ है - धीरे धीरे - ! चलिए तबतक हम कुछ मांसाहारी भोजन कर आयें !

Thursday, February 14, 2008


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