Sunday, January 11, 2009

मन में कभी किसी तरह का हीनभाव नहीं पैदा हुआ

गंभीर ने खोले कामयाबी के राज

पिछले साल रनों का अंबार लगा देने वाले भारतीय ओपनर गौतम गंभीर ने कहा है कि श्रीलंका के स्पिनरों मुथैया मुरलीधरन और अजंता मेंडिस के खिलाफ मिली कामयाबी उनके करियर का निर्णायक मोड़ साबित हुई।गंभीर ने एक निजी टीवी चैनल के साथ बातचीत में आज कहा कि गत वर्ष जुलाई-अगस्त में श्रीलंका के खिलाफ टेस्ट सीरीज में रन बनाने के मामले में दूसरे नंबर पर रहने से उनका आत्मविश्वास बढ़ गया।उन्होंने कहा, “इस प्रदर्शन से मुझे यह अहसास हो गया कि मैं टेस्ट क्रिकेट में भी बेहतर प्रदर्शन कर सकता हूं”।शायद इस भरोसे का ही कमाल था कि वर्ष 2008 की दूसरी छमाही में गंभीर ने आठ टेस्ट खेलकर ही एक हजार रनों का आंकड़ा पार कर लिया।बाएं हाथ के आक्रामक ओपनर गंभीर से जब उनके सबसे बुरे अनुभव के बारे में पूछा गया तो उन्होंने वर्ष 2007 के विश्वकप में भारत के खराब प्रदर्शन का जिक्र किया।उन्होंने नए साल में भी अच्छा प्रदर्शन जारी रखने का भरोसा जताते हुए कहा, “अब लोगों की मुझसे उम्मीदें बढ गई हैं और मैं उन्हें निराश नहीं करना चाहूंगा। लेकिन सबसे बड़ा लक्ष्य तो देश को दुनिया की नंबर एक टीम के रूप में देखना है”।गंभीर ने कहा कि दुनिया के कुछ बेहतरीन बल्लेबाजों के साथ खेलने के बावजूद उनके मन में कभी किसी तरह का हीनभाव नहीं पैदा हुआ। अपने सलामी जोड़ीदार वीरेंद्र सेहवाग के बारे में उन्होंने कहा, “उनको लेकर मैंने कभी भी कमतर महसूस नहीं किया। टीम की जीत किसी भी खिलाड़ी से अधिक मायने रखती है”।

No comments: