दिलीप वेंगसरकर की अध्यक्षता वाली पूर्व चयन समिति को आड़े हाथों लेते हुए सौरव गांगुली ने कहा है कि उन्हें हर बार बलि का बकरा बनाया गया जबकि दूसरों को बख्शा जाता रहा और उन्होंने इसके बाद शर्मिदगी से बचने के लिए संन्यास का फैसला लिया।
इस सप्ताह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास का फैसला लेने वाले गांगुली ने कहा, इस तरह खेलने का कोई फायदा नहीं है। मैं चयनकर्ताओं की दया पर खेलने के लिए तैयार नहीं हूं। वे आज आपको चुनेंगे और कल बाहर कर देंगे। मैं हर बार बलि का बकरा क्यों बनूं। यह स्वीकार कर पाना मुश्किल है। उन्होंने एक बांग्ला दैनिक को दिए साक्षात्कार में कहा, यदि आपके सिर पर तलवार लटक रही हो तो आप कितना बर्दाश्त कर सकते हैं। वह भी 450 मैच खेलने के बाद। मैंने सिर्फ एक सीरीज में खराब खेला लेकिन दूसरों को बाहर नहीं किया गया। मैंने वापसी के बाद सबसे ज्यादा रन बनाए हैं।
चयनकर्ताओं के व्यवहार से निराश गांगुली ने कहा, मैं और कितना खेलता। शायद 2009 तक। शायद सात और टेस्ट। इसके लिए मैं और अपमान झेलने को तैयार नहीं था। पूर्व भारतीय कप्तान ने कहा, वेंगसरकर की अध्यक्षता वाली चयन समिति द्वारा उन्हें ईरानी कप के लिए शेष भारत की टीम से बाहर किया जाना ताबूत में आखिरी कील थी और उन्हें लगा कि अब बेइज्जती की इन्तहां हो गई। उन्होंने कहा, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं ईरानी टीम से बाहर हो जाऊंगा। मैं गुस्से के कारण एक महीने तक सो नहीं सका। यदि नई चयन समिति तीन साल पहले आई होती तो हालात दीगर होते।
सुनील गावस्कर के इस बयान पर कि वह और वीवीएस लक्ष्मण हमेशा दबाव में रहे हैं गांगुली ने कहा, भारतीय क्रिकेट में सब कुछ होता है। जब ग्रेग चैपल ने मुझे बाहर किया तो मेरी जगह टी पी सिंह को चुना। वह अब कहां है। कुछ खिलाडि़यों ने पिछली तीन सीरीजों में रन नहीं बनाए हैं कुछ ने पिछले एक साल से रन नहीं बनाए हैं। कुछ खिलाड़ी इतनी बार अपनी हेयर स्टाइल बदल चुके हैं जितने उन्होंने रन नहीं बनाए हैं। मुझे वापसी के बाद सर्वाधिक रन बनाने के बावजूद बाहर किया गया।
ईरानी ट्राफी से बाहर होने से गांगुली इस कदर आहत हैं कि उन्हें यह चैपल से मतभेद के बाद टीम से निकाले जाने से भी अधिक दर्दनाक लगा। उन्होंने कहा, ईरानी टीम से बाहर होना अधिक दुखदायी था। मुझे लगा कि यह अंत है। अपने 16 बरस के अंतरराष्ट्रीय करियर में तमाम उतार-चढ़ावों का सामना करने के बावजूद गांगुली संतुष्ट हैं। उन्होंने कहा, मैंने 109 टेस्ट और 300 से अधिक वनडे खेले। मैं देश में सर्वाधिक रन बनाने वाला चौथा बल्लेबाज हूं। टेस्ट और वनडे मिलाकर मेरे नाम 18,251 रन हैं जो दुनिया में नौवें स्थान पर है। मैं टीम को विश्व कप फाइनल तक ले गया आस्ट्रेलिया को उसकी धरती पर हराया, पाकिस्तान में सीरीज जीती। कुल 21 टेस्ट जीते। लेकिन हर इच्छा तो पूरी नहीं हो सकती।
बंगाल के इस कद्दावर खिलाड़ी ने कहा, मैंने काफी सोच समझकर संन्यास का फैसला लिया है। मैंने इस पर काफी विचार किया। सब कुछ सोचने के बाद ही मैंने यह फैसला लिया। मुझे लगा कि यह संन्यास लेने का सही समय है। मैं आस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज शुरू होने से पहले ही यह मसला खत्म करना चाहता था। मुझे लेकर तमाम अटकलें लगाई जा रही थी। चयनकर्ताओं ने कुछ कहा लेकिन किया कुछ और। यह पूछने पर कि भारत के लिए दोबारा नहीं खेल पाने से क्या वह दुखी हैं उन्होंने कहा, मैं भी इंसान हूं। क्रिकेट मेरे लिए जुनून है। किसी को भी बुरा लगेगा। वैसे यह इतना मुश्किल नहीं है जितना मैंने सोचा था। मुझे लग रहा है कि भारी बोझ हट गया है। अब मैं टीम को जीतते देखकर अपने करियर का अंत करना चाहता हूं।
Thursday, October 9, 2008
Wednesday, October 8, 2008
'प्रिंस आफ कोलकाता' तुम्हे सलाम

भारतीय क्रिकेट को नई बुलंदियों तक पहुंचाने में महती भूमिका निभाने वाले सफलतम कप्तानों में से एक सौरव गांगुली ने आखिरकार अपने महाराज का ताज उतारने का फैसला कर ही लिया। हालांकि इसकी इसकी वजह भी कुछ हद तक जायज है।
इंग्लैंड के पूर्व सलामी बल्लेबाज एवं प्रसिद्ध क्रिकेट कमेंटटर ज्याफ बायकाट ने ऐसे ही उन्हें 'प्रिंस आफ कोलकाता' और 'बेस्ट टाइमर आफ द बाल' की उपाधि नहीं दी थी। वह सही मायने में इसके हकदार हैं। बंगाल टाइगर, दादा और कमबैक मैन जैसे कई नामों से मशहूर गांगुली को टीम से कई बार बाहर निकाला गया। उनसे कप्तानी भी छीनी गई, लेकिन हर बार उन्होंने जोरदार वापसी कर आलोचकों और भारतीय चयनकर्ताओं को करारा जवाब दिया। अपने नेतृत्व में उन्होंने कई अहम क्रिकेट सीरिज में भारत को जीत दिलाई। रायल बंगाल टाइगर रीयल फाइटर की उपाधि से भी विभूषित रहें हैं।
ंिंवश्व क्रिकेट में शायद ही कोई ऐसा महान खिलाड़ी होगा जिसने एक नहीं तीन बार अपने प्रदर्शन के बल पर राष्ट्रीय में जगह बनाने में सफलता हासिल की हो।
चाहे जितना भी कुशल तैराक क्यों न हो लंबे समय तक धारा के विपरीत नहीं तैर सकता है। एक समय ऐसा आता जब उसका हौसला और उसकी हिम्मत जवाब देने लगती है। ठीक ऐसा ही महाराज के साथ भी हुआ है।
पिछले तीन वर्षो से वह लगातार राष्ट्रीय चयनकर्ताओं की विरोधी भावनाओं से संघर्ष कर रहे थे। अंतत: उन्होंने स्वयं का सम्मान बचाने के लिए क्रिकेट को अलविदा कह डाला। यह देखना रुचिकर होगा कि भारतीय क्रिकेट के इस महाराज का 'राज' अब कौन संभालेगा, क्योंकि कहने और करने में बहुत फर्क होता है? आगामी आस्ट्रेलिया सीरीज के बाद सौरव ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को आखिरी सलाम कहने की घोषणा कर दी है।
आज सभी क्रिकेट प्रेमियों एवं सौरव के प्रशंसकों की आँखों में वह नजारा अवश्य तैर गया होगा जब इस बंगाल टाइगर ने क्रिकेट के मक्का कहे जाने वाले लार्ड्स मैदान की बालकनी में इंग्लैंड के खिलाफ नेटवेस्ट ट्राफी जीतने के बाद अपनी टी शर्ट उतारकर हवा में लहराई थी। यह दर्शाता है कि सौरव कितने शातिर दिमाग कप्तान थे।
उन्होंने ऐसा जानबूझकर किया था। ऐसा करके उन्होंने इंग्लैंड के हरफनमौला खिलाड़ी एंड्रयू फ्लिंटाफ को जवाब दिया था। जिन्होंने 2002 नेटवेस्ट ट्राफी के पहले भारतीय दौरे में वानखेड़े स्टेडियम पर खेले गए आखिरी वनडे मैच में भारत के खिलाफ जीत के बाद अपनी टी शर्ट उतारकर मैदान के अंदर ही लहरानी शुरू कर दी थी।
आस्ट्रेलिया के महान स्पिनर शेन वार्न भी सौरव की इसी आक्रामक अदा के कायल हैं। निश्चित रूप से इस फाइटर खिलाड़ी के योगदान को भुलाना भारतीय क्रिकेट और क्रिकेट प्रेमियों के लिए बहुत मुश्किल होगा। विश्व चैंपियन आस्ट्रेलिया को 2001 की सीरीज में सौरव के नेतृत्व में ही टीम इंडिया ने 2-1 से शिकस्त देकर उन्हें करारा झटका दिया था। सौरव ने ही स्टीव वा की टीम का मानमर्दन करके भारतीय क्रिकेट को नया गौरव प्रदान किया था।
बाएं हाथ का यह बल्लेबाज मैदान के अंदर और बाहर दोनों तरह के संघर्ष में माहिर था। इसी कारण आस्ट्रेलियाई इससे सबसे अधिक चिढ़ते थे और चिढ़ते हैं। मानसिक द्वंद्व में भी सौरव ने स्टीव वा एंड कंपनी को मात देकर उन्हें घुटनों के बल लाने की शुरुआत 2001 में ही कर दी थी। भारतीय क्रिकेटरों की मानसिक दशा और दिशा बदलने में भी इस महान योद्धा का बहुत बड़ा योगदान रहा है। यह सौरव का ही नेतृत्व बल था जिसने भारतीय खिलाड़ियों के दिमाग में यह बैठा दिया कि आस्ट्रेलियाई अजेय नहीं हैं।
अब देखना यह है कि युवाओं को मौका देने के नाम पर सौरव पर दबाव वाले किसे उसका उत्ताराधिकारी बनाते हैं?
सौरव ने हाल में में कहा था कि उनमें दो साल की क्रिकेट अभी बाकी है, लेकिन सच्चाई यही है कि भारत के इस सबसे सफल कप्तान ने क्रिकेट को अलविदा कह दिया है। कोलकाता वासियों के लिए मंगलवार का दिन शुभ नहीं रहा। एक ओर टाटा मोटर्स की कार नैनो का प्लांट बंगाल से हटकर गुजरात में चला गया, दूसरी ओर बंगाल टाइगर के इस फैसले ने बंगाल को निराशा के सागर में डुबो दिया। पिछले एक दशक से भारतीय क्रिकेट को नित नए आयाम देने वाले इस जुझारू खिलाड़ी ने कहा कि उन्होंने अपने साथी खिलाड़ियों को अपने फैसले के बारे में बता दिया था कि यह मेरी अंतिम सीरीज होगी और मैं इसका अंत जीत के साथ करना चाहूंगा। हालांकि सौरव अपने संन्यास को लेकर भारी दबाव से गुजर रहे थे।
Tuesday, October 7, 2008
युवराज न ठोकी ताल
नई दिल्ली। विस्फोटक बल्लेबाज युवराज सिंह को उनके खराब फॉर्म के कारण चयनकर्ताओं ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहले दो टेस्ट मैचों के लिए पूरी तरह नजर अंदाज कर दिया था। लेकिन उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ड्रॉ समाप्त हुए चार दिवसीय अभ्यास मैच में तूफानी शतक ठोककर भारतीय टीम के वरिष्ठ खिलाड़ियों पर दबाव बढ़ा दिया।बोर्ड अध्यक्ष एकादश के कप्तान युवराज ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ रविवार को हैदराबाद में ड्रॉ समाप्त हुए अभ्यास मैच में दूसरी पारी मात्र 143 गेंदों पर सात चौकों और सात छक्कों की मदद से 113 रन ठोक डाले थे। युवराज ने इस जोरदार पारी से नई राष्ट्रीय चयन समिति के सामने अपनी दोवदारी पेश कर दी है।
युवराज का हालांकि यह थोड़ा दुर्भाग्य रहा कि यह अभ्यास मैच शुरु होने से एक दिन पहले ही ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ शुरुआती दो टेस्ट मैचों के लिए भारतीय टीम की घोषणा कर दी गई थी।टीम में पूर्व कप्तान सौरव गांगुली को उनकी हाल के खराब फॉर्म के बावजूद बरकरार रखा गया जबकि घरेलू क्रिकेट में ढेरों रन बनाने वाले सुब्रमण्यम बद्रीनाथ को टेस्ट टीम में आने का मौका दिया गया।गांगुली को टीम में चुने जाने के बाद बेंगलुरु में अनुकूलन शिविर में शामिल करने के बजाय उन्हें मैच अभ्यास के लिए चेन्नई में न्यूजीलैंड (ए) के खिलाफ मैच में भारत (ए) की तरफ से उतारा गया। लेकिन वे दोनों पारियों में असफल रहे।पहली पारी में वे 14 रन बनाकर रनआउट हो गए और दूसरी पारी में छह रन बनाकर कैच आउट हो गए।
युवराज का हालांकि यह थोड़ा दुर्भाग्य रहा कि यह अभ्यास मैच शुरु होने से एक दिन पहले ही ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ शुरुआती दो टेस्ट मैचों के लिए भारतीय टीम की घोषणा कर दी गई थी।टीम में पूर्व कप्तान सौरव गांगुली को उनकी हाल के खराब फॉर्म के बावजूद बरकरार रखा गया जबकि घरेलू क्रिकेट में ढेरों रन बनाने वाले सुब्रमण्यम बद्रीनाथ को टेस्ट टीम में आने का मौका दिया गया।गांगुली को टीम में चुने जाने के बाद बेंगलुरु में अनुकूलन शिविर में शामिल करने के बजाय उन्हें मैच अभ्यास के लिए चेन्नई में न्यूजीलैंड (ए) के खिलाफ मैच में भारत (ए) की तरफ से उतारा गया। लेकिन वे दोनों पारियों में असफल रहे।पहली पारी में वे 14 रन बनाकर रनआउट हो गए और दूसरी पारी में छह रन बनाकर कैच आउट हो गए।
Monday, September 22, 2008
ऑस्ट्रेलिया टीम भारत पहुंची
रिकी पोंटिंग की अगुवाई में आस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम नौ अक्टूबर से शुरू होने वाली चार टेस्ट मैचों की सीरीज में भाग लेने के लिए सोमवार को यहां पहुंची।
भारतीय क्रिकेट बोर्ड के सूत्रों के अनुसार टीम अंतरराष्ट्रीय टर्मिनल से बाहर नहीं आई और उसे घरेलू टर्मिनल से जयपुर के लिए उड़ान पकड़नी है। आस्ट्रेलियाई टीम को जयपुर में कुछ अभ्यास मैच खेलने है। इसके बाद वह 29 सितंबर को हैदराबाद पहुंचेगी और तभी से दौरे की आधिकारिक शुरुआत होगी। जयपुर में रुकने और राजस्थान क्रिकेट अकादमी के खिलाफ अभ्यास मैचों की व्यवस्था क्रिकेट बोर्ड ने नहीं बल्कि राजस्थान क्रिकेट संघ ने की है।
भारत और आस्ट्रेलिया के बीच पहला टेस्ट मैच नौ अक्टूबर से बेंगलूर में, दूसरा मैच 17 अक्टूबर से मोहाली में, तीसरा मैच 29 अक्टूबर से दिल्ली में तथा चौथा और अंतिम टेस्ट मैच छह नवंबर से नागपुर में होगा।
भारतीय क्रिकेट बोर्ड के सूत्रों के अनुसार टीम अंतरराष्ट्रीय टर्मिनल से बाहर नहीं आई और उसे घरेलू टर्मिनल से जयपुर के लिए उड़ान पकड़नी है। आस्ट्रेलियाई टीम को जयपुर में कुछ अभ्यास मैच खेलने है। इसके बाद वह 29 सितंबर को हैदराबाद पहुंचेगी और तभी से दौरे की आधिकारिक शुरुआत होगी। जयपुर में रुकने और राजस्थान क्रिकेट अकादमी के खिलाफ अभ्यास मैचों की व्यवस्था क्रिकेट बोर्ड ने नहीं बल्कि राजस्थान क्रिकेट संघ ने की है।
भारत और आस्ट्रेलिया के बीच पहला टेस्ट मैच नौ अक्टूबर से बेंगलूर में, दूसरा मैच 17 अक्टूबर से मोहाली में, तीसरा मैच 29 अक्टूबर से दिल्ली में तथा चौथा और अंतिम टेस्ट मैच छह नवंबर से नागपुर में होगा।
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