Wednesday, October 8, 2008

'प्रिंस आफ कोलकाता' तुम्हे सलाम


भारतीय क्रिकेट को नई बुलंदियों तक पहुंचाने में महती भूमिका निभाने वाले सफलतम कप्तानों में से एक सौरव गांगुली ने आखिरकार अपने महाराज का ताज उतारने का फैसला कर ही लिया। हालांकि इसकी इसकी वजह भी कुछ हद तक जायज है।
इंग्लैंड के पूर्व सलामी बल्लेबाज एवं प्रसिद्ध क्रिकेट कमेंटटर ज्याफ बायकाट ने ऐसे ही उन्हें 'प्रिंस आफ कोलकाता' और 'बेस्ट टाइमर आफ द बाल' की उपाधि नहीं दी थी। वह सही मायने में इसके हकदार हैं। बंगाल टाइगर, दादा और कमबैक मैन जैसे कई नामों से मशहूर गांगुली को टीम से कई बार बाहर निकाला गया। उनसे कप्तानी भी छीनी गई, लेकिन हर बार उन्होंने जोरदार वापसी कर आलोचकों और भारतीय चयनकर्ताओं को करारा जवाब दिया। अपने नेतृत्व में उन्होंने कई अहम क्रिकेट सीरिज में भारत को जीत दिलाई। रायल बंगाल टाइगर रीयल फाइटर की उपाधि से भी विभूषित रहें हैं।
ंिंवश्व क्रिकेट में शायद ही कोई ऐसा महान खिलाड़ी होगा जिसने एक नहीं तीन बार अपने प्रदर्शन के बल पर राष्ट्रीय में जगह बनाने में सफलता हासिल की हो।
चाहे जितना भी कुशल तैराक क्यों न हो लंबे समय तक धारा के विपरीत नहीं तैर सकता है। एक समय ऐसा आता जब उसका हौसला और उसकी हिम्मत जवाब देने लगती है। ठीक ऐसा ही महाराज के साथ भी हुआ है।
पिछले तीन वर्षो से वह लगातार राष्ट्रीय चयनकर्ताओं की विरोधी भावनाओं से संघर्ष कर रहे थे। अंतत: उन्होंने स्वयं का सम्मान बचाने के लिए क्रिकेट को अलविदा कह डाला। यह देखना रुचिकर होगा कि भारतीय क्रिकेट के इस महाराज का 'राज' अब कौन संभालेगा, क्योंकि कहने और करने में बहुत फर्क होता है? आगामी आस्ट्रेलिया सीरीज के बाद सौरव ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को आखिरी सलाम कहने की घोषणा कर दी है।
आज सभी क्रिकेट प्रेमियों एवं सौरव के प्रशंसकों की आँखों में वह नजारा अवश्य तैर गया होगा जब इस बंगाल टाइगर ने क्रिकेट के मक्का कहे जाने वाले ला‌र्ड्स मैदान की बालकनी में इंग्लैंड के खिलाफ नेटवेस्ट ट्राफी जीतने के बाद अपनी टी शर्ट उतारकर हवा में लहराई थी। यह दर्शाता है कि सौरव कितने शातिर दिमाग कप्तान थे।
उन्होंने ऐसा जानबूझकर किया था। ऐसा करके उन्होंने इंग्लैंड के हरफनमौला खिलाड़ी एंड्रयू फ्लिंटाफ को जवाब दिया था। जिन्होंने 2002 नेटवेस्ट ट्राफी के पहले भारतीय दौरे में वानखेड़े स्टेडियम पर खेले गए आखिरी वनडे मैच में भारत के खिलाफ जीत के बाद अपनी टी शर्ट उतारकर मैदान के अंदर ही लहरानी शुरू कर दी थी।
आस्ट्रेलिया के महान स्पिनर शेन वार्न भी सौरव की इसी आक्रामक अदा के कायल हैं। निश्चित रूप से इस फाइटर खिलाड़ी के योगदान को भुलाना भारतीय क्रिकेट और क्रिकेट प्रेमियों के लिए बहुत मुश्किल होगा। विश्व चैंपियन आस्ट्रेलिया को 2001 की सीरीज में सौरव के नेतृत्व में ही टीम इंडिया ने 2-1 से शिकस्त देकर उन्हें करारा झटका दिया था। सौरव ने ही स्टीव वा की टीम का मानमर्दन करके भारतीय क्रिकेट को नया गौरव प्रदान किया था।
बाएं हाथ का यह बल्लेबाज मैदान के अंदर और बाहर दोनों तरह के संघर्ष में माहिर था। इसी कारण आस्ट्रेलियाई इससे सबसे अधिक चिढ़ते थे और चिढ़ते हैं। मानसिक द्वंद्व में भी सौरव ने स्टीव वा एंड कंपनी को मात देकर उन्हें घुटनों के बल लाने की शुरुआत 2001 में ही कर दी थी। भारतीय क्रिकेटरों की मानसिक दशा और दिशा बदलने में भी इस महान योद्धा का बहुत बड़ा योगदान रहा है। यह सौरव का ही नेतृत्व बल था जिसने भारतीय खिलाड़ियों के दिमाग में यह बैठा दिया कि आस्ट्रेलियाई अजेय नहीं हैं।
अब देखना यह है कि युवाओं को मौका देने के नाम पर सौरव पर दबाव वाले किसे उसका उत्ताराधिकारी बनाते हैं?
सौरव ने हाल में में कहा था कि उनमें दो साल की क्रिकेट अभी बाकी है, लेकिन सच्चाई यही है कि भारत के इस सबसे सफल कप्तान ने क्रिकेट को अलविदा कह दिया है। कोलकाता वासियों के लिए मंगलवार का दिन शुभ नहीं रहा। एक ओर टाटा मोटर्स की कार नैनो का प्लांट बंगाल से हटकर गुजरात में चला गया, दूसरी ओर बंगाल टाइगर के इस फैसले ने बंगाल को निराशा के सागर में डुबो दिया। पिछले एक दशक से भारतीय क्रिकेट को नित नए आयाम देने वाले इस जुझारू खिलाड़ी ने कहा कि उन्होंने अपने साथी खिलाड़ियों को अपने फैसले के बारे में बता दिया था कि यह मेरी अंतिम सीरीज होगी और मैं इसका अंत जीत के साथ करना चाहूंगा। हालांकि सौरव अपने संन्यास को लेकर भारी दबाव से गुजर रहे थे।

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