Sunday, February 17, 2008

शिक्षकों को चुनाव से दूर रखने की सिफारिश

नई दिल्ली। राष्ट्रीय ज्ञान आयोग की सिफारिशों को अगर सरकार मान लेती है तो चुनाव ड्यूटी पर जाने वाले शिक्षकों के लिए अब राहत की सांस लेने का समय आ गया है। आयोग ने शिक्षकों को चुनाव ड्यूटी में नहीं भेजे जाने की सिफारिश की है।
अध्यापकों को बड़े पैमाने पर गैर अध्यापन कार्य में खास तौर से चुनाव ड्यूटी में मतदान केंद्रों पर तैनात किए जाने की राष्ट्रीय ज्ञान आयोग ने जमकर मुखालफत की है। आयोग का मानना है कि अध्यापकों के गैर अध्यापन कार्य में जाने से शिक्षा के समय की बर्बादी होती है।
सैम पित्रोदा की अगुवाई वाले राष्ट्रीय ज्ञान आयोग ने स्कूली शिक्षा पर एक नोट में कहा है कि इन कार्यो में उन्हीं लोगों को भेजा जाना चाहिए जिन्हें इसके लिए रखा गया है और शिक्षकों के सिर पर से ऐसे बोझ को अवश्य कम किया जाना चाहिए।
आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा है कि शिक्षकों को मतदान, सर्वेक्षण तथा डाटा एकत्रित करने जैसे अशैक्षणिक कार्यो में लगाने से अध्यापन कार्य के समय में कटौती हो जाती है। यह शिक्षकों के पेशेवराना महत्व को भी कम कर देता है।
ज्ञान आयोग की यह अनुसंशा ऐसे समय में आई है जब दस प्रदेशों में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं। अगले वर्ष के शुरुआत में लोक सभा चुनाव भी कराया जाएगा। ज्ञान आयोग ने बेरोजगार स्थानीय युवकों तथा जहां तक संभव हो सके हाल ही में नौकरी से अवकाश प्राप्त लोगों को ऐसे कामों में लगाने की अनुसंशा की है।
इधर, चुनाव आयोग ने कहा चुनावी गतिविधि में शिक्षकों को शामिल किया जाना अवश्यंभावी है। आयोग ने कहा कि स्कूली शिक्षा के महत्व को एक व्यवसाय के रूप में बहाल करना चाहिए। आयोग ने यह भी सिफारिश की है कि शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए यह अत्यावश्यक है कि बेहतर शिक्षकों की भर्ती की जाए। वह अच्छा काम कर सके इसके लिए उन्हें उचित सुविधाएं प्रदान की जाए।
अपने एक अन्य महत्वपूर्ण सिफारिश में आयोग ने कहा कि सरकारी और निजी स्कूलों को राष्ट्रीय इकाई की निगरानी में रखा जाना चाहिए ताकि शिक्षा की गुणवत्ता एवं उनके न्यूनतम मानदंडों का पालन किया जा सके। इसने कहा है कि स्कूलों की गुणवत्ता के आकलन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक जांच इकाई की आवश्यकता है। परिणाम आधारित निगरानी ढांचा बनाए जाने की जरूरत है। अपनी अनुसंशा में आयोग ने कहा है कि निजी स्कूलों में नामांकन में पारदर्शिता बरती जानी चाहिए। शुल्क के ढांचे का गठन होना चाहिए। उसने शिक्षा के न्यूनतम स्तर की गुणवत्ता तथा बुनियादी ढांचे पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत बताई है।

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