Sunday, March 16, 2008

आडवाणी की आत्मकथा से भाजपा परेशान

नई दिल्ली। लोकसभा में विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा माई कंट्री माई लाइफ का विमोचन होने से पहले भारतीय जनता पार्टी में जहां घबराहट है, वहीं उसके विरोधी दल अगले लोकसभा चुनाव से पहले आडवाणी के खिलाफ राजनीति मसाला हाथ लगने की बाट जोह रहे हैं।

पूर्व राष्ट्रपति कलाम 19 मार्च को आडवाणी की आत्मकथा का विमोचन करेंगे, लेकिन इससे पहले ही इस पुस्तक को लेकर राजनीतिक दलों और मीडिया में तरह तरह के कयास लगने लगे हैं। भाजपा नेता इस आशंका से ग्रसित हैं कि अब जबकि आडवाणी अगले चुनाव के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार घोषित हो चुके हैं तो उनकी आत्मकथा को लेकर जिन्ना विवाद की तरह कोई और नया बखेड़ा नहीं खड़ा हो जाए।

दूसरी ओर कांग्रेस और सहयोगी दलों में इस पुस्तक में नया राजनीतिक मसाला मिलने और फिर उसकी आड़ में आडवाणी को घेरने की पूरी आस बंध चुकी है। उनका मानना है कि आतंकवाद के मुद्दे पर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को पहले दिन से घेर रहे आडवाणी की कंधार अपहरण मामले में एक बार फिर घेरेबंदी की जा सकती है।

आडवाणी की आत्मकथा के प्रकाशन के बारे में भाजपा के शीर्ष नेताओं तक भनक नहीं थी और जब इसके विमोचन के कार्यक्रम सार्वजनिक हुए तो सभी भौचक्के रह गए। कुछ नेताओं का कहना है कि आखिर चुनाव से पहले इसको प्रकाशित करने का क्या मतलब है। आडवाणी की साठ साल से भी अधिक समय की राजनीति में अनेक उतार-चढ़ाव आए हैं, विरोधी नकारात्मक पहलुओं को उछालने से नहीं चूकेंगे।

उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री रहे आडवाणी की आत्मकथा में अयोध्या आंदोलन, अयोध्या में विवादित ढांचा विध्वंस, राजग सरकार का गठन, आगरा शिखर वार्ता, कारगिल युद्ध, कंधार अपहरण और 2005 में उनकी पाकिस्तान की विवादास्पद यात्रा में पहली बार विस्तार से उनकी मन:स्थिति को जानने का मौका मिलेगा, लेकिन ये सभी वे मुद्दे हैं जो उनके विरोधियों के लिए राजनीति के अखाडे़ में पटखनी देने जैसे हैं।

भाजपा नेताओं ने कहा कि पत्रकारिता से लंबे अर्से तक जुडे़ रहे आडवाणी को खासतौर अपने विरोधियों और मीडिया की कड़ी से कड़ी आलोचनाओं का करारा जवाब देना आता है। सूत्रों का कहना है कि इस पुस्तक की प्रस्तावना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने लिखी है, जिसमें उन्होंने अपने सबसे पुराने सहयोगी आडवाणी की जमकर सराहना की है। विमोचन से पहले यह प्रस्तावना मीडिया में सार्वजनिक हो चुकी है, जो आडवाणी के हित में जाएगी।

एक भाजपा नेता ने कहा कि जिन्ना प्रकरण के कारण भले ही आडवाणी को पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा, लेकिन कुल मिलाकर उनकी छवि उदार हुई है। वह विपक्ष के नेता की हैसियत से पाकिस्तान गए थे तो प्रोटोकाल के नाते जिन्ना की मजार पर जाना ही था और जब आप किसी की मजार पर जाएंगे तो शिष्टाचार की औपचारिकता निभानी होती है, आडवाणी ने भी वही किया। वैसे कंधार अपहरण के मुद्दे पर आडवाणी कह चुके हैं कि वह दिसंबर 1999 में कंधार विमान अपहरण कांड के खिलाफ कार्रवाई करने के पक्ष में थे, लेकिन राजग सरकार ने इंडियन एयरलाइंस के 160 यात्रियों के जीवन के बदले तीन आतंकियों को छोड़ने का फैसला किया। उन्होंने कहा है कि सरकार ने महसूस किया कि यात्रियों को बचाना चाहिए और मैं भी इसका एक हिस्सा था। मैं इसे परिभाषित नहीं कर सकता, लेकिन पृष्ठभूमि यह है। आडवाणी ने कहा कि यदि राजग सरकार आतंकवाद पर समझौता करने की इच्छुक होती तो आगरा सम्मेलन कभी विफल नहीं होता।

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