नई दिल्ली । सौगातों से सजे बजट से गर्वीली सरकार और बजट का छिद्रान्वेषण कर उसे जनता के साथ धोखा करार देने वाले विपक्ष के बीच संसद में घमासान के प्रबल आसार है।
अब जबकि सारे संकेतक समय पूर्व चुनावों की तरफ झुक गए है, तो सभी दलों की रणनीति भी बदलने लगी है। वे संसद में लंबी चर्चाओं में उलझने के बजाय जनता के असल मसीहा होने का दावा करने के लिए एक-दूसरे को नीचा दिखाने में जुटेंगे। जाहिर है इन हालात में हंगामा होगा और सबसे उपर दलों का अपना-अपना चुनावी एजेंडा होगा।
पहले लालू की सस्ती रेल और अब चिदंबरम की वोटर राजा को खुश करने के लिए दी गई सौगातों के बाद विपक्ष के हाथ फिलहाल खाली हैं। दोनों बजटों में कमियां तो निकाली जाएंगी, लेकिन उनसे जनता को सरकार के खिलाफ खड़ा करना मुश्किल काम होगा। इसलिए विपक्ष अब उन मुद्दों पर जोर देगा, जो जनता से सरोकार तो रखते होंगे, लेकिन बजट की रोशनी से दूर होंगे। उसका इरादा हर दिन नए मुद्दे पर सरकार को कठघरे में खड़ा करने का है। इनमें सबसे बड़ा मोर्चा आंतरिक सुरक्षा का रहेगा। सीमा पार आतंकवाद, नक्सलियों के बुलंद हौसले व पूर्वोत्तर में जारी हिंसा पर आने वाले दिनों में सरकार कठघरे में होगी।
यह एक ऐसा मोर्चा है जिस पर संप्रग सरकार अपने अब तक के चार साल में सबसे कमजोर साबित हुई है।
विपक्ष का अगला मोर्चा महंगाई है। किसानों को राहत व वेतनभोगियों को कर छूट के बावजूद महंगाई पर फिलहाल लगाम लगाने का कोई फार्मूला सरकार पेश नहीं कर पाई है। भाजपा इसे बहुत बड़ा व महत्वपूर्ण मुद्दा मानती है। आम आदमी की दाल-रोटी को लेकर वह सरकार से उसका भाव पूछेगी। महिलाओं को लोकसभा व विधानसभाओं में एक तिहाई आरक्षण को लेकर भी सरकार की क्लास लेने की पूरी तैयारी हो चुकी है। परमाणु करार का मुद्दा भी सरकार के गले की फांस बनेगा। इस मुद्दे पर विपक्ष को सत्ता के सहयोगी वामदलों का साथ भी मिलेगा, जो सरकार से हनीमून खत्म होने के लंबे समय बाद भी तलाक लेने के बजाय अभी तक सिर्फ लड़ते-झगड़ते काम चला रहे हैं।
जाहिर है, सरकार हर हाल में अपने शानदार बजट के इर्द-गिर्द ही रहना चाहेगी। वहीं विपक्ष अपने हमलों के लिए सरकार के इस कवच के हिस्से के बजाय दूसरे हिस्सों पर निशाना साधेगा। इन हालात में बहस कम और हंगामा ज्यादा होने के ही आसार हैं।
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