Saturday, December 15, 2007
इंसान खाली होता है तो उसके दिमाग में बेमतलब के फितूर आना स्वाभाविक है, ऐसा ही आजकल कुछ मेरे साथ हो रहा है, मैंने सोचा क्यों ना कुछ पत्रकारिता सम्बन्धी चर्चा कर ली जाए ! मेरे द्वारा पत्रकारिता की चर्चा हो और भोपाल का जिक्र ना आए ऐसा कैसे हो सकता है, वह भी उन स्थितियों में जब भोपाल से मेरा कुछ खास ही लगाव हो ? जी हाँ भोपाल एक ऐसा शहर है जहाँ कला संस्कृति के अलावा पत्रकारिता का भी अपना एक अलग ही अंदाज है और फिर भोपाल और पत्रकारिता तो मानों एक दूसरे के पूरक ही हैं ! अब भोपाल और पत्रकारिता का जिक्र चले और राज एक्सप्रेस को नजरंदाज़ कर दिया जाए तो ऐसा कैसे हो सकता है जनाब, क्योकि राज एक्सप्रेस ही तो आधुनिक पत्रकारिता और हर रोज नए नए बदलाव करने वाली पत्रकारिता का दर्पण है, फिर मैनें तो वहा पूरे डेढ़ साल मगज मारी की है और राज एक्सप्रेस से काफी कुछ नया सीखा है ॥ राज एक्सप्रेस में हर रोज नए प्रयोगों का अंदाजा तो इसी बात से लगाया जा सकता है की इस अखबार ने महज एक साल में पांच संपादकों को देखा है, जो भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में शायद ही पहले कभी हुआ हो ..और इतना ही नहीं, आज भी वहाँ परिवर्तन का दौर जारी है॥ आज भी राज एक्सप्रेस में नवोदितों के लिए नए प्रयोग करते रहने की भरपूर छूट है ॥ इसके अलावा संपादकों का बदलना तो आज भी बदस्तूर जारी है और इस समय शायद शीतल जी वहाँ का कार्यभार संभाले हुए हैं, जो पहले भोपाल के नवभारत और फिर यूपी के अमर उजाला की सैर कर चुके हैं ॥ इसके अलावा राज एक्सप्रेस के मालिक और एमडी अरुण सह्लोत जी के भी हिम्मत की दाद देनी होगी, जिन्होंने पत्रकारिता का क, ख, ग भी नहीं जानने के बावजूद और एक बिल्डर की हैसियत से इस अखबार की शुरुआत की और वहाँ पहले से स्थापित व सुविख्यात दैनिक भास्कर समूह को कड़ी चुनौती दे डाली॥ लेकिन, अखबार में नित नए बदलावों के चलते वहा भर्ती होने वालों के एक पैर संस्था में और दूसरा बाहर ही रहा, फिर भी इससे अखबार की सेहत पर कुछ खास असर नहीं पडा॥हालांकि, राज एक्सप्रेस की खूबियों का बखान इतना आसान नहीं कि उन्हें पल भर में बयान कर दिया जाए इसके लिए एक बार फिर मुझे आपके सामने की-बोर्ड पर हाथ चलाना होगा लेकिन फिलहाल अगली पंक्ति के लिए कुछ समय चाहिए क्योकि खाली व्यक्ति सबसे अधिक व्यस्त होता है !
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