Sunday, March 23, 2008
आडवाणी ने बनाया सोनिया को टारगेट
भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी किताब में 1998 में सरकार के गठन और एक साल बाद सरकार के पतन पर अपनाई गई प्रक्रिया के मुद्दे पर दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन पर प्रहार किए हैं।आडवाणी ने अपनी किताब में कांग्रेस अध्यक्ष एवं संप्रग प्रमुख सोनिया गाँधी पर भी हमला करते हुए आरोप लगाया कि सोनिया ने वाजपेयी सरकार को अस्थिर करने के लिए षड्यंत्र के बीज बोए। पूर्व उपप्रधानमंत्री ने यह भी आरोप लगाया कि सोनिया ने राष्ट्रपति भवन परिसर में बड़ा झूठ बोला कि सरकार बनाने के लिए उनके पास संख्या है।आडवाणी ने अपनी किताब में लिखा कि सरकार गठन करने के लिए अटलजी को आमंत्रित करने में राष्ट्रपति नारायणन के दस दिन के विलंब से बहुतों की भवें तनी। उन्होंने प्रधानमंत्री की नियुक्ति के लिए एक नई मिसाल यह कायम की कि अगर लोकसभा के किसी चुनाव से कोई त्रिशंकु संसद बनती है, जिसमें किसी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन को बहुमत नहीं मिलता है तो, सिर्फ उस व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाएगा जो सहयोगी पार्टियों की तरफ से पेश समर्थन-पत्रों के माध्यम से राष्ट्रपति को बहुमत हासिल करने की अपनी क्षमता के प्रति आश्वस्त करने में सफल रहता है। आडवाणी ने अपनी किताब 'माई कंट्री माई लाइफ' में लिखा है कि नारायणन ऐसा कर अपने पूर्व के दो राष्ट्रपतियों आर. वेंकटरमन और शंकरदयाल शर्मा की कार्रवाइयों से अलग हो गए, जिन्होंने बिना यह निर्धारित किए अकेली सबसे बड़ी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया कि सदन में विश्वास मत हासिल करने की उनकी क्षमता है या नहीं।पूर्व उपप्रधानमंत्री ने उच्चतम न्यायालय के 1994 के प्रसिद्ध बोम्मई फैसले और साथ ही सरकारिया आयोग की रिपोर्ट का दृष्टांत देते हुए कहा कि राज्यपाल सबसे बड़ी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन के नेता को सरकार के गठन के लिए आमंत्रित करने के लिए बाध्य हैं। उस नेता को सदन का विश्वास हासिल है या नहीं इसका फैसला राजभवन में नहीं बल्कि विधानसभा के सदन में होना चाहिए।आडवाणी का कहना है संविधान की यह भावना रहते हुए भारत के राष्ट्रपति संभवत: प्रधानमंत्री की नियुक्ति की किसी भिन्न प्रक्रिया को वैधता नहीं दे सकते। एक्टिविस्ट राष्ट्रपति के रूप में मशहूर नारायणन ने अटलजी से बहुमत हासिल करने की एनडीए की क्षमता के प्रदर्शन के लिए समर्थन-पत्र पेश करने को कहा। इसने कांग्रेस पार्टी को हमारे कुछ संभावित सहयोगियों को तोड़ लेने के लिए कुछ नाकाम नापाक राजनीतिकरण करने का मौका दिया।आडवाणी के अनुसार कांग्रेस अपने इस प्रयास में नाकाम रही, लेकिन 1998 में राष्ट्रपति से मिले अप्रत्यक्ष प्रोत्साहन ने 1999 में गहराई में जड़े जमाई अस्थिरता की उसकी प्रवृति को मजबूत किया। वाजपेयी राष्ट्रपति की माँगों को पूरा करने में कामयाब रहे और 1998 के मार्च माह में उन्हें इस आधार पर प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई कि वह दस दिन के अंदर लोकसभा में अपना बहुमत साबित कर देंगे।आडवाणी ने कहा कि सरकार निर्माण से पहले कांग्रेस ने भाजपा से इतर एक विकल्प तैयार करने की कोशिश की। अंतत: सत्ता की लालसा पर प्राथमिक गणित का तर्क विजयी रहा। पूर्व उपप्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रपति नारायणन से मुलाकात करने के बाद सोनिया गाँधी ने माना हमारे पास सरकार गठन के लिए कोई संख्या नहीं है इसलिए हम कोई दावेदारी पेश नहीं कर रहे हैं।आडवाणी ने कहा कि उनके (सोनिया के) बयान से यह साफ है कि जिस चीज ने उन्हें (सरकार गठन की) दावेदारी पेश करने से रोका वह आवश्यक संख्या जुटाने में असफलता थी द कि यह समझ है कि कांग्रेस को जनादेश से वंचित किया गया है।आडवाणी ने अपनी किताब में कहा कि मैं यहाँ यह बात इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि उनके (सोनिया के) शब्द वाजपेयी सरकार को अस्थिर करने की मंशा, बल्कि साजिश के बीज को ढँकते हैं, जो मई 1999 में राष्ट्रपति भवन के परिसर में कहे गए एक बड़े झूठ में प्रतिबिंबित हुए। पूर्व उपप्रधानमंत्री ने इसके बाद 1999 के आरंभ में 13 महीने की वाजपेयी सरकार के पतन से कुछ दिन पहले के घटनाक्रम का जिक्र किया है।आडवाणी ने पोखरण परमाणु परीक्षण, वाजपेयी की लाहौर बस यात्रा और केन्द्रीय बजट की तरफ इशारा करते हुए कहा कि बम, बस और बजट के सकारात्मक विकास से चिंतित होकर कांग्रेस गैर कांग्रेस सरकारों को अस्थिर करने के अपने पुराने खेल में लौट गई। भाजपा नेता ने कहा कि कांग्रेस ने तमिलनाडु की द्रमुक सरकार की बर्खास्तगी की माँग की। यह ऐसी माँग थी, जिसे वाजपेयी सरकार कबूल नहीं कर सकती थी।आडवाणी ने कहा कि 14 अप्रैल 1999 को अन्नाद्रमुक ने एनडीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया। एक बार फिर राष्ट्रपति नारायणन ने राजनीतिक घटनाक्रम में प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने प्रधानमंत्री वाजपेयी से तीन दिन के अंदर विश्वासमत हासिल करने को कहा। उन्होंने कहा कि इतने छोटे से काल में भी राजग अनेक छोटी पार्टियों का समर्थन हासिल करने में सक्षम रहा, लेकिन अंतत: विश्वासमत में एक मत से वाजपेयी सरकार हार गई।
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